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Saturday, June 5, 2010

चिड़िया आज बैचन है

चिड़िया आज बैचन है
मन नहीं किसी बात का
न तो घोंसले को सजाया है
न ही वो उडी है
न पेड़ और पत्तों से
फलों  से फूलों से कोई बात की है
आकाश मनुहार कर कर थक गया है
धरती बार बार आवाजें देती है
वो है  उदास चुप चाप
कभी रोने को बेताब
ऐसे में वो आया है
जिसे देख इतर इतर उडती थी वो
आज उसे देख कर भी कुछ नहीं होता उसे
तब समय ने कहा
अब कोई कुछ न कहे
वो आज यू  रहेगी उदास
जब तलक लिख न ले वो
नया कोई गान
सुबह होने पर जिसे उसे चहचहाना है 
ये उदासी चिड़िया की सृजन के पहिले की चुप्पी है
जीवन की सुगबुगाहट है ......

5 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण रचना!

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  2. bahut khub



    फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  3. जब तक लिख ना ले नया गान रहेगी यूँ ही उदास ...
    चिड़िया के मार्फ़त उदासी के कारण और भावो पर डाली नजर आपकी कविता ने
    अच्छी लगी ...!!

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  4. kya baat kahi hai..........bahut sundar bhaav.......kal ke charcha manch par aapki post hogi.

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  5. यही चिड़िया मेरे मन में प्रतिदिन मन में चहचहाती है ।

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