चिड़िया आज बैचन है
मन नहीं किसी बात का
न तो घोंसले को सजाया है
न ही वो उडी है
न पेड़ और पत्तों से
फलों से फूलों से कोई बात की है
आकाश मनुहार कर कर थक गया है
धरती बार बार आवाजें देती है
वो है उदास चुप चाप
कभी रोने को बेताब
ऐसे में वो आया है
जिसे देख इतर इतर उडती थी वो
आज उसे देख कर भी कुछ नहीं होता उसे
तब समय ने कहा
अब कोई कुछ न कहे
वो आज यू रहेगी उदास
जब तलक लिख न ले वो
नया कोई गान
सुबह होने पर जिसे उसे चहचहाना है
ये उदासी चिड़िया की सृजन के पहिले की चुप्पी है
जीवन की सुगबुगाहट है ......
बहुत भावपूर्ण रचना!
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
जब तक लिख ना ले नया गान रहेगी यूँ ही उदास ...
ReplyDeleteचिड़िया के मार्फ़त उदासी के कारण और भावो पर डाली नजर आपकी कविता ने
अच्छी लगी ...!!
kya baat kahi hai..........bahut sundar bhaav.......kal ke charcha manch par aapki post hogi.
ReplyDeleteयही चिड़िया मेरे मन में प्रतिदिन मन में चहचहाती है ।
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