विदा के क्षण
पीछे मुड कर देखा
हरियाली के बीच झांकते
पीले पत्तों को
और ठहर कर सोचा
निराश होने का अब अर्थ नहीं था
शिकायत भी करता तो किससे
समय को लौटा लाने की ताक़त भी कहा थी
बस उस पीले को समेट लिया
अपने में मर रहे पानी से
सींच कर फिर
हरा करने की चाह के साथ !
जाते जाते हटाकर यूँ पीले पत्तों को
संसार पूरा हरा कर दिया
पीले पत्ते अब मुरझाएंगे मेरे साथ
या उनकी करकराहट
याद दिलाएगी मेरी यात्रा
जो देगी कभी उलाहना
करेगी कभी सवाल
या शायद दिखाएगी पथ नया
जिस पर में न चल पाउँगा कभी
मगर जो भी चलेगा .
फिर अपने पीछे छोड़ेगा हमेशा हरा
इतना भर हो जाये तो भी
यात्रा मेरी शायद अधूरी न रहे ....
विदा के क्षण
आते है हर एक के जीवन
दुआ देता हूँ ..वही अब कर सकता हूँ
जब भी लो विदा तुम
और मुड कर देखो
तो तुम्हे हरियाली ही हरियाली नज़र आये .....
bahut badhiya...
ReplyDeleteसकारात्मक सोच से बुनी अच्छी रचना..
ReplyDeleteजब भी लो विदा
ReplyDeleteमुद कर देखो तो
हरियाली ही हरियाली नजर आये ...
विदा लेने वाले के लिए भी इतनी दुआ ....
बहुत बढ़िया ...!!
बहुत सुन्दर व बढिया रचना है।एक सकारत्मक सोच।बधाई स्वीकारें।
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