Search This Blog

Friday, June 4, 2010

विदा के क्षण

विदा के क्षण
पीछे मुड कर देखा
 हरियाली के बीच झांकते
पीले पत्तों को
और ठहर कर सोचा
निराश होने का अब  अर्थ नहीं था
शिकायत भी करता तो किससे 
समय को लौटा लाने की ताक़त भी कहा थी
बस उस पीले को समेट लिया
अपने में मर रहे पानी से
 सींच कर फिर
हरा करने की चाह के साथ !
जाते जाते  हटाकर यूँ पीले पत्तों को
संसार पूरा हरा कर दिया
पीले पत्ते अब मुरझाएंगे मेरे साथ
या उनकी करकराहट
याद दिलाएगी मेरी यात्रा
जो देगी  कभी उलाहना
करेगी कभी सवाल 
या शायद दिखाएगी पथ नया
जिस पर  में न चल पाउँगा कभी
मगर जो भी चलेगा .
फिर अपने पीछे छोड़ेगा  हमेशा हरा
इतना भर हो जाये तो भी
यात्रा मेरी शायद अधूरी न रहे ....
विदा के क्षण 
आते है हर एक के जीवन
दुआ देता हूँ ..वही अब कर सकता हूँ
जब भी लो विदा तुम
और मुड कर देखो

तो तुम्हे हरियाली ही हरियाली नज़र आये .....

4 comments:

  1. Anonymous04 June, 2010

    bahut badhiya...

    ReplyDelete
  2. सकारात्मक सोच से बुनी अच्छी रचना..

    ReplyDelete
  3. जब भी लो विदा
    मुद कर देखो तो
    हरियाली ही हरियाली नजर आये ...
    विदा लेने वाले के लिए भी इतनी दुआ ....
    बहुत बढ़िया ...!!

    ReplyDelete
  4. Anonymous04 June, 2010

    बहुत सुन्दर व बढिया रचना है।एक सकारत्मक सोच।बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete