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Tuesday, June 8, 2010

विजयी भवो


झूठ बोलते रहो
सच लगने लगेगा
सच  बोलते रहो
अविश्वसनीय- असम्भव- अप्राप्य
किसी और के लिए अपेक्षित
अमानवीय- असमाजिक सा
लगने लगता है
और आपको अकेला
करता जाता है
पढकर सब कहेंगे सही है ये
ऐसा होता है
स्वभाविक है ऐसा होना
फिर हर कोई भीड़ में क्यूँ रहना चाहता है ?

सत्य के साथ अकेला होकर
भला भीड़ में रहा जा सकता है ?

हम सामाजिक है
झूठ सच हमारे सापेक्ष होते है
इसीलिए जरुरी है
अधिक ताकतवर होकर
सच झूठ को ढाल लेना
अपने हालात के सांचे में
और हर स्थिति में
विजयी होना .....
क्यों तो खुद अकेले होना
क्यों सच को अकेला करना ...

4 comments:

  1. waah badhiya prayogatmak baat kahi..vichaar karne yogya

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  2. जब आपका हर वाक्य आपके व्यक्तित्व की ही अभिव्यक्ति हो तो सच न बोलना आपके आत्म की अवहेलना ही होगा ।

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