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Wednesday, June 9, 2010

हुई मैं बेहाल ....

मैं क्या कहूँ
क्या सोचूं
क्षण क्षण
काटता है
जैसे
चलता हो कोई आरा
मन की कोरों पर होती कसमसाहट
में होती अपने में कभी
कभी होती उसमें
सीमायें देह की टूट गयी
देखूं उसे तो
चिल्लाऊं
नहीं देखू तो बावरी हो पुकारूँ
विरह की तो सुनी थी
होती ऐसी हालत
पर कान्हा तू ही बता
प्यार में तेरे गोपी का
होता था क्या ऐसा हाल ?
प्यार की आरी से कट
हुई मैं बेहाल ....

7 comments:

  1. pasand !
    pasand !
    pasand !

    anupam kavita !

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  2. सुंदर रचना

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  3. बेहद सुन्दर!!

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  4. प्यार की आरी से कटना, काटना ...
    सुन्दर शब्द प्रयोग ...!!

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  5. वाह वाह

    प्रस्तुति...प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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