वो ऐसी नहीं थी
की मुझे छोड़ देती
मगर में ही उसे छेड़ता रहता था
अपनी सीमायें भूल गया
उसकी सीमाए तोडनी चाही
वो खूंखार हुई
में डर के दरिया में डूब गया
अब आँख मीचे इंतिज़ार में हूँ की वो आये
मुझे उभारे मुझ पर फैंक एक मुस्कान
फिर से मुझ बेजान में डाल दे जान
मगर वो फिर नहीं आती
और में अब कोसता हूँ खुद को
संवेदनात्मक।
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