दिन के शुरू होते ही
हलचल ,भागम भाग
फिर घर पहुचने की जल्दी
फिर घर से बाहिर
घर को ले जाने की योजना
बच्चे ,आकांक्षाएं ,आगे और आगे रहने का जूनून
और अचानक आई आपदाएं ,बीमारिया ,अपनों की मौत
पूरा एक पैकेज ..जीवन का बण्डल
जिसे हँसते हँसते ज़ियु या रोते रोते
कोई तय नहीं
अवसान ..दुःख ...बिछोह ..हंसी ...गम ...उल्लास
छोटे छोटे पन्ने है इस बण्डल के
इन पन्नो से क्या खुश होना क्या दुखी ..
.बस मुस्करा कर जो होता है उसे करना स्वीकार
येही नियति है ...यही जन्म लेती है कविता
गति और स्थिरता के बीच भटकती कविता।
ReplyDelete