शाम चिड़िया पर छा रही है होले होले
पते खुसफुसा रहे है
आपस मैं बाते कर रहे है उसकी
वो जानती है सब ओर उसकी चर्चा है
सुनकर खुश होती है
और भीतर सहमती है
आज भी अगर वो नहीं आया
क्या कहूंगी ...दुनिया को छोड़ो
जो हुआ है मेरे साथ
वो फिर कैसे मैं अकेले यूँ सहूंगी
रात आई
और अँधेरे मैं बदली चिड़िया
फिर उडी नहीं
झर गयी पते के मानिंद
सुबह पते सारे चिड़िया हो गए
और पेड़ की खोखल में फैलती हुई दरार
जड़ों तक को झकजोर गयी .....
अब पेड़ पर
है हमेशा रात -- दिन रात....सिर्फ रात !!
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