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Monday, May 30, 2011

पेड़ पर दिन रात


शाम चिड़िया पर छा रही है होले होले 
पते खुसफुसा रहे है
आपस मैं बाते कर रहे है उसकी 
वो जानती है सब ओर उसकी चर्चा है 
सुनकर  खुश  होती है 
और भीतर  सहमती  है 
आज भी अगर वो नहीं आया 
क्या कहूंगी ...दुनिया को छोड़ो 
जो हुआ है मेरे साथ 
वो फिर कैसे मैं अकेले यूँ सहूंगी 
रात आई  
और अँधेरे मैं बदली चिड़िया 
 फिर उडी नहीं 

झर गयी पते के मानिंद
 सुबह पते सारे  चिड़िया हो गए 
और पेड़ की खोखल में  फैलती हुई दरार 
जड़ों तक को झकजोर गयी .....
अब  पेड़ पर
है हमेशा रात -- दिन रात....सिर्फ रात !!

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