गंगा के उदगम पर आज कुछ घटा है
अंतिम छोर की लहरें बहुत उदास हुई
समां रही है अपने प्रिय के आलिंगन यू
जैसे अभी फूट फूट रोयेंगी
मगर रोती नहीं
वे कह्मोश नज़रों से देखती हुई आई है
अपने सभी किनारों को
सभी मौज मस्ती में डूबे है
कही कोई नहीं मिला जो नाम भी ले निगमानंद का
निढाल हुई गंगा सागर में यू गिर गयी है
और लहरें भी शांत हुए जाती है
उद्गम से अब गंगा नहीं आ रही
वो तो शायद निगमानन्द के साथ गयी अब
सिर्फ पानी आता है जो न आसू है ना कोई भाव
पाषाण हुई धरा पर बसते पाषण लोगो
गंगा शायद अब वापिस शिव की जाता में जाने को है तयार
रोक लो रोक लो उसे शायद बच जाए अपना कल अपना आज
गंगा शायद अब वापिस शिव की जाता में जाने को है तयार
ReplyDeleteरोक लो रोक लो उसे शायद बच जाए अपना कल अपना आज
बहुत बढ़िया,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इस संवेदनहीन समाज के कोई गंगा क्या मांगे
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