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Wednesday, October 19, 2011

फिर याद !

जंगल सो रहा है 
रास्ते जग रहे है 
चोकन्ने अँधेरे में 
रौशनी के बीज  आकार लेने को बेताब हो 
आत्मा को खोज रहे है 
जो अभी न जाने
किस खोल को ओढ़े 
है अभी कही ,अभी आएगी मुझे ओढने
सृजन का समय आ गया 
जंगल के इस अँधेरे से  
निसृत होने से पहिले 
आत्मा मुस्कुरायी 
फिर ..फिर ...कितने जन्मो तक 
तुम करोगे प्यार 
अभी तक जन्में  नहीं 
और करने लगे उसे 
फिर याद !












 

2 comments:

  1. अभी तक जन्में नहीं
    और करने लगे उसे
    फिर याद !
    bahut khub kaha hai aapne,,,
    jai hind jai bharat

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  2. "सृजन का समय आ गया
    जंगल के इस अँधेरे से
    निसृत होने से पहिले
    आत्मा मुस्कुरायी
    फिर ..फिर ...कितने जन्मो तक
    तुम करोगे प्यार
    अभी तक जन्में नहीं
    और करने लगे उसे
    फिर याद !"

    बहुत ही खूबसूरत भाव और प्रस्तुति !

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