कुछ हूँ
मैं
नाकुछ है वे सब
कुछ है वे
नाकुछ हूँ मैं
ये समय ने गई कैसी राग !
जिसमे शब्द फट रहे है
अहम् के पहाड़ों से छुल छुल गिर रहे हैं
राग का वर्तुल इतना पसरा
कि रूंध रहा है गला
गीत नहीं ,शब्द नहीं
राग के साथ गाती -झरती है आँखें
जिनकी टप टप से
लबालब समय
बहा ले जाता है
मेरा सब ....
नेह ,प्रेम ..रिश्ता
......ऐसे में
कविता की पतवार ले
लौटा लाया
विश्वास ,श्रधा
और मेरा समय फिर बासंती हो गया !!!
मैं
नाकुछ है वे सब
कुछ है वे
नाकुछ हूँ मैं
ये समय ने गई कैसी राग !
जिसमे शब्द फट रहे है
अहम् के पहाड़ों से छुल छुल गिर रहे हैं
राग का वर्तुल इतना पसरा
कि रूंध रहा है गला
गीत नहीं ,शब्द नहीं
राग के साथ गाती -झरती है आँखें
जिनकी टप टप से
लबालब समय
बहा ले जाता है
मेरा सब ....
नेह ,प्रेम ..रिश्ता
......ऐसे में
कविता की पतवार ले
लौटा लाया
विश्वास ,श्रधा
और मेरा समय फिर बासंती हो गया !!!
कविता की पतवार मूल्यों को खे कर मंजिल तक पहुंचती है!
ReplyDeleteसुंदर रचना!