Search This Blog

Wednesday, November 16, 2011

विदाई

कितना भारी है ये समय
कल्पनाओ और वास्तविकताओं के बीच डोलता
कोई भी आवाज हलकी सी  भी आती है
तो लगता है कोई खबर  आई है मेरे लिए
इस बड़ी होती जाती दुनिया में कोई नहीं
जो समझ सके ...मुझे ..सोच सके मुझे
पलों पर पीले पतों की मानिंद गिरते पल
हर दिन मुझे सूखा पेड़  बनाते जाते है
चिड़िया कोई नहीं आती ,फूल देखे तो महीनो बीते
कोई राहगीर नहीं जो सुस्ताये बैठे मेरे पास
बढ़ते वीराने में अकेला होता जाता हूँ
अब आस भी नहीं रही ,अंदेशे भी ख़तम हुए
तब जड़ से फूटी कोंपल आश्वस्त कर गयी
गिरते मुझको मिलते मिटटी में  उस हरे ने
दी एक मुस्कराहट
इस विदाई ने मेरे जीने को सफल किया
मरते मरते ........



1 comment: