रात अँधेरा ,दिन उजाला
तुम और मैं -रात -दिन
बस करवट बदलते है
एक ही आकार में
फोटो फ्रेम में बंधे
एक रिश्ते को नाम देते है
निभाना इसे कहते है
इसका दंभ भरते है
वगरना हमने ये फ्रेम
कभी तोड़ दिया होता
दंभ को अभी तो और जीना है
मरने से पहिले फिर फिर मरना है
सांचो में जो भी ढला
वो एक सांचाहोकर ही जिया
आकार तो सांचे ने तय किया
तुम -मैं ,रात -दिन
यू है साथ साथ एक सांचे में ढले
तयशुदा आकार
अब डरते है करवट बदलने से भी
कही सांचे से न आ जाए बाहिर .....
तुम और मैं -रात -दिन
बस करवट बदलते है
एक ही आकार में
फोटो फ्रेम में बंधे
एक रिश्ते को नाम देते है
निभाना इसे कहते है
इसका दंभ भरते है
वगरना हमने ये फ्रेम
कभी तोड़ दिया होता
दंभ को अभी तो और जीना है
मरने से पहिले फिर फिर मरना है
सांचो में जो भी ढला
वो एक सांचाहोकर ही जिया
आकार तो सांचे ने तय किया
तुम -मैं ,रात -दिन
यू है साथ साथ एक सांचे में ढले
तयशुदा आकार
अब डरते है करवट बदलने से भी
कही सांचे से न आ जाए बाहिर .....
behtreen rachna abhivaykti...
ReplyDeletebada kathin hai frame se baahar aakar jeena !
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