तुम्हारी याद
बिखरी है चिड़िया के पाँखों सी
और धूल मैं धूल जैसे रंग में बदल रहे खून सी
हवाएँ भी डर जाती है
इस वीरानी को उड़ाने से
उसे भी डर है
हो न जाए दुनिया फिर सूनसान
बिखरी है चिड़िया के पाँखों सी
और धूल मैं धूल जैसे रंग में बदल रहे खून सी
हवाएँ भी डर जाती है
इस वीरानी को उड़ाने से
उसे भी डर है
हो न जाए दुनिया फिर सूनसान
अपनी पहचान से पहिले सी ...राकेश मूथा
No comments:
Post a Comment