मंच पर
छाने लगा है अँधेरा
परदा उठने को है
में अपनी जिदगी से निकल
कथाकार व् निर्देशक की बताई दुनिया में
प्रवेश करने को हूँ
उस चरित्र के सारे रिश्ते
उसके परिवार ,समाज में जाने को हूँ
अँधेरा छटने लग रहा है
परदा भी उठ गया है
और तुम ठीक मेरे सामने बैठी दिख जाती हो
मेरा संसार नाटक के संसार से झूझने लगता है
विसंगतिया जीवन की नाटक की विसंगतियों से
ताल नही बैठा पा रही है
और
दिख जाता है
निर्देशक
जीवन वास्तविकताओं की सीमाओं से
बाहिर निकल करने लगता हूँ में व्यव्हार
निर्देशक कहते है
अब नाटक ख़तम हो गया है ......
और तुम ठीक मेरे सामने बैठी दिख जाती हो
ReplyDeleteमेरा संसार नाटक के संसार से झूझने लगता है
विसंगतिया जीवन की नाटक की विसंगतियों से
ताल नही बैठा पा रही है
bahut gahri baat hai atoot satay
jeevan ka natak se kaisa taal mel
sapna sapna hai
haqeeqat haqeeqat