Search This Blog

Tuesday, September 8, 2009

रंगकर्मी

मंच पर
छाने लगा है अँधेरा
परदा उठने को है
में अपनी जिदगी से निकल
कथाकार व् निर्देशक की बताई दुनिया में
प्रवेश करने को हूँ
उस चरित्र के सारे रिश्ते
उसके परिवार ,समाज में जाने को हूँ
अँधेरा छटने लग रहा है
परदा भी उठ गया है
और तुम ठीक मेरे सामने बैठी दिख जाती हो
मेरा संसार नाटक के संसार से झूझने लगता है
विसंगतिया जीवन की नाटक की विसंगतियों से
ताल नही बैठा पा रही है
और
दिख जाता है
निर्देशक
जीवन वास्तविकताओं की सीमाओं से
बाहिर निकल करने लगता हूँ में व्यव्हार
निर्देशक कहते है
अब नाटक ख़तम हो गया है ......

1 comment:

  1. और तुम ठीक मेरे सामने बैठी दिख जाती हो
    मेरा संसार नाटक के संसार से झूझने लगता है
    विसंगतिया जीवन की नाटक की विसंगतियों से
    ताल नही बैठा पा रही है

    bahut gahri baat hai atoot satay
    jeevan ka natak se kaisa taal mel
    sapna sapna hai
    haqeeqat haqeeqat

    ReplyDelete