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Tuesday, September 8, 2009

प्रकृति

में जानता हूँ कि
सब जानते है
जो में कर रहा ग़लत है
फ़िर भी में कर रहा हूँ
वे भी कर रहे है
सब जानते है आजकल
कि सब यही रहे है
जो नही करना चाहिए
यों समवेत रूप से ग़लत आचरण करके हम
जब भी मिलते है एक दूजे से कहते है कि
ऐसा आचरण सही नही है
फ़िर एक दिन कानून के शिकंजे में आने पर
जब सभी को पता चलता है
तब सभी सहमते है भीतर
और सोचते है कि बेचारा पकड़ा गया
ये तो में भी कर रहा था
यहाँ तक कि फ़ैसला देने वाला भी कई बार चोंक जाता है
कि पूरा समाज
सोचता कुछ है
करता कुछ और है
कानून कुछ और बनाता है
इस सारे चक्कर ये बेचारा जो खड़ा है कटघरे में
सजा पा जाएगा
और पूरी बस्ती,पूरा देश,पूरा विश्व
इस सजा के बाद भी
यही आचरण दोहरायेगा
भ्रत्सना करना
और
जिस सिधांत की भ्रत्सना की जाए
उसी सिधांत के अनुरूप
व्यव्हार करना प्रकृति है
प्रकृति कब बदलती है //////

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