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Tuesday, October 6, 2009

सपना हो साकार

कोई किसी से क्यों कर लेता प्यार
और क्यों हो जाता छोड़ उसे अलग
बिलखने के लिए
कर जाता क्यों अकेला
जिसके साथ देखे कभी उसने जीवन रंगीन करने के सपने
क्या अलग होने वाला हमेशा ग़लत है
या अलग होने वाला हमेशा सही
सवाल ये यों नही होगा हल
गणित नही
न विज्ञानं
प्रेम शास्त्र है ये
अजीब
कल तक जो चाँद था तारा था उसकी आँख की रौशनी था
कल तक जिसके बिना नही था कोई दिन या रात
वही आज घ्रिन्ना का पात्र है
वही आज शूल है फूल नही
एक ऐसे रास्तें खड़ी में
बूज्ती रहती हु पहेली
सोचती हूँ वे पल लौट आयें
सोचती हूँ कभी न आए वे पल
सोचती हूँ अब भी उसे
चाहती हूँ अब भी उसे
मगर नही चाहती उसका साथ
कल कोर्ट में भी हो जाएगा फ़ैसला
कल मुझे मिल जाएगा तलाक
फ़िर से में वही पहुँच जाउंगी जहा से हुए थी मेरी पहचान
अब बनुगी नई पहचान
जियूंगी में हर हाल
मेरी बच्ची के लिए देखूंगी सपने हज़ार
और देखूंगी उसे करते प्यार
किसी से
और किसी को देखूंगी मेरी बच्ची से करते प्यार
जब सोचूंगी मेने कुछ किया
अपनी जिंदगी में .........किसी सपने को साकार ////

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