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Thursday, October 29, 2009

सोच में होगा क्या हमारे अब भी बदलाव ????

एक पल की चूक
बदल जाती है दावानल में
काबू पाना उस पर हो जाता है असंभव
भागते चीखते चिल्लाते
असहाय मिनखोंके दर्द से आसमान छूती
लपटें और ऊँची और ऊँची होती जाती है
दहशत का धुंवा लपेट लेता है
पुरे शहर को ,आस पास के गावों को
और धीरे धीरे टीवी के द्वारा फैल जाती है
दर्द की आग पुरी दुनिया
तेल और आग का भयानक मेल
दिखता है सबको
सब स्तब्ध है
बेबस है
और आग इस बेबसी का उडाती मजाक फैलती ही जा रही है
धोडी देर पहिले जो सोच रहे थे दूसरो के बारे
वो भागते फिरते है ख़ुद को बचाने
लपटें नजदीक है
भस्म कर देंगी
और लपटों से बच गए त्तो धुंवा लील ही लेगा जान
अब तुम ही बातों क्या करे ऐसे वक्त
नाना मेरे कह गए
राजस्थानी में ये बात
"पहली रहता यूँ
त्तो तबला बाजता क्यूँ "
नाना नही अब इस दुनिया
मगर आग चीख चीख कह रही है
अब भी सम्भालों अपने को
अब भी बचा लो आने वाली नस्लों को
देखेंगे आग बजने के बाद
सोच में होगा क्या हमारे जरा भी बदलाव ???

1 comment:

  1. bilkul sahi farmaya..........yahan hadse hote rahte hain aur hote rahenge magar badlaav ki koi ummeed nhi karni chahiye.......aam insaan hi to hain agar mar gaye to kisi ka kya gaya sirf kuch hi pariwar hain na .........sarkar ka to koi nuksaan nhi hai na........bas apna matlab siddh hona chahiye.........bas yahi badlaav aata hai iske aage koi kisi ki nhi sochta.

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