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Sunday, October 4, 2009

बुझा बुझा सा

शोला जो लाल सुर्ख हो जाए

न छुओं उसे

शोले का लाल रंग काला हो जाएगा

आपका हाथ झुलस जाएगा

हाथों में राख होगी

और चेहरे पर वेदना

आग मुह फुलाए करेगी तुमसे शिकायत

क्या जरुरत है किसी के दुखों में झाँकने की

अब देखो बदरंग कर दिया तुमने शोले को

जो अपने शिखर पर था आग को समाते हुए अपने में

जी रह था पुरी जिंदगी

उसे तुम्हारी सांत्वना ने

कर दिया बदरंग

अब भी वो जल रहा है

मगर बुझा बुझा सा ....///

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