सब कुछ सफ़ेद हुआ जाता है
ढका जाता है
उस पानी की याद से
जो कभी बहता था
नदी में ,समुद्र में
अब
हुआ है सफ़ेद
न जाने किस डर से ,किस गम से
या फिर रूठ गया है
बदल कर रूप
फिर भी वो बदला कहाँ ?
होकर सफ़ेद, फिर भी --
उसने अपना रंग- ये बदला कहा
कुछ देर बाद मान जायेगा
अपने सारे गम ,अपने सारे डर
अपने सारे शिकवे गिले भूल
बहेगा फिर वो
नदी में ,समुद्र में
पानी अपना प्रेम ,अपना राग ,अपना मूल स्वभाव
कभी --कहाँ भूलता ?
फिर, पीकर वही पानी
क्यूँ बदल जाते तुम ?
क्यूँ बदल जाता मैं ?
आदमी क्यों बदल जाते है ..बहुत मुश्किल है इस बात का जवाब...बढ़िया रचना राकेश जी बधाई
ReplyDeleteGambheer chintan aur bahut hi sundar bhavabhivyakti...padhkar man prasann ho gaya...aabhaar...
ReplyDeleteफिर, पीकर वही पानी
ReplyDeleteक्यूँ बदल जाते तुम ?
क्यूँ बदल जाता मैं ?
-बड़ी गहरी बात कह गये, राकेश भाई!!
vinod kumarji ,ranjanaji ,udan tashtariji.....aapke padhne se aur tippani dene se kavita ka hona sarthak hua...paani pee peeker hum paani ko hi kharab kerne lage ...intihan ho gayi.....
ReplyDelete