सारे सुख, सारे स्वाद ,सारे प्रसाधन
मेरे हो ,मेरे हो ,मुझ सा और कोई न हो
दुःख सारे ,रोग सारे ,दर्द सारे ,काम सारे
कोई और भोगे ,वही भोगता रहे
मुझ पर कभी न आये विपत्ति .
में कभी न फंसू बाढ़ में ,तूफ़ान में ,
न आग में .न दंगे में ,न झगडे फसाद में
ठहाके लगता रहूँ उमर भर
सहानुभूति जताता रहूँ लोगो के साथ
मुझ पर कभी न कोई जत्ताये सहानुभूति
लहरें हंसती है उस पर
ऐसे कैसे होगा रे मन मानव ?
ज्वार आएगा तो लहरें उठेंगी उपर
छूएंगी आकाश
भाटा आने पर उतरेंगी ये लहरें
तट पर आ- सो रहेगा थक मांद पानी
समझो ...और फिर से सोचों ...रे मन मानव ....
दुःख आया है तो सुख भी आएगा
सुख ये जायेगा दुःख आएगा .......***राकेश
बहुत अच्छी कविता है. दुख सुख सब आएँगे ही. बस उन्हें सहने या उनका आनन्द लेने के लिए अपनों का साथ होना चाहिए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मानव मन कितना स्वार्थी है
ReplyDeleteयही तो जीवन है....सुख दुख के आने जाने का नाम.....
ReplyDeleteअच्छी रचना है।बधाई।