साल के आखिरी दिन
लिख लूँ कविता
जिसमें हो साल के सारे दिन महीने
बीता मेरा काल
वे सब भी हों जिनके साथ में रहा उस काल
मेरी सारी घृणा ,प्रेम ,छल ,विश्वास ,धोखा
सब हो इस कविता में
जैसे हो दर्पण ,काल के सामने
दिख जाऊं मैं और मेरा समाज उस काल का
इस कविता में
तभी हो सकेगा मेरे कल में उजाला
स्वच्छ हो सकेगा मेरा आने वाला आकाश
कल जो बीत जाता है
आने वाले समय की नीव को करता कभी मजबूत
कभी नीव में मर जाता है पानी ज्यूं बीता समय .....
बहुत सुन्दर क्विता है।बधाई राकेश जी।
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत खूब.................सच है खुद से साक्छात्कार नही होग तो न भीतर भरा भरा होगा न अन्दर बाहर उजाला.............
ReplyDeleteनव वर्ष मे लेखनी को और रवानगी मिले...........
ati sundar
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