धुंधला सा है
उडती रेत में
बनता चेहरा
बीते दिनों में
ये क्षण लौटता सा है /
जानता हूँ ये
अब नहीं संभव
तेरा शरीर
लौट आये
ये प्यार तुम्हारी देह सा है /
इस रास्ते
है तुम्हरी महक
ये रास्ता
देख मुझे
अब भी शरमाता सा है /
देह से
निकल जाने के बाद
तुम रोयें सी
लिपट गयी
अब सब कुछ तुमसा है /
किसी को खोने की मार्मिक अभिव्यक्ति । शुभकामनायें
ReplyDeleteuff ! bahut hi gahan abhivyakti.
ReplyDeleteपढने के बाद कितनी देर मौन रही, पता नहीं.
ReplyDeleteदिल के एहसासों को खोबसूरत अलफ़ाज़ दिए हैं.....बहुत खूब
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