बेकार की बहस है
कहा जाते हो ?क्यूँ जाते हो?कब आओगे?
इसी बात का है रिश्ता ,
और इन प्रश्नों के जवाब तय करते है
अगले पलों में लड़ाई का क्या होगा रूप
आस पास की हवा कभी कभी हो जाती है बैचैन
इस बार लम्बी देर तक चल रही है कुश्ती
वाकई कोई घायल न हो जाये
मगर कुछ देर बाद झूमती है हवाएँ
कुछ देर बाद प्रेम में मगन हो जाता जहान
उस लड़ाई में प्रेम के बीज हरे पौधों में बदले थे
इस प्रेम में अंकुरित हो रही है नयी लड़ाई
ऐसे चल रहा हमारा दांपत्य
बताया आपको इसीलिए की
आप समझ न लें कि
हम लड़ाई खोर है
या है प्रेम दीवाने ....
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना है।बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना हमेशा की तरह!
ReplyDeleteऐसे चल रहा हमारा दांपत्य
ReplyDeleteबताया आपको इसीलिए की
आप समझ न लें कि
हम लड़ाई खोर है
या है प्रेम दीवाने ....
Wah,बहुत सुन्दर !
उस लड़ाई में प्रेम के बीज हरे पौधों में बदले थे
ReplyDeleteइस प्रेम में अंकुरित हो रही है नयी लड़ाई
बहुत खूबसूरती से लिखी है आपने ये जीवंत रचना....सच्चाई बयां करती हुई.....बधाई