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Tuesday, January 12, 2010

मादा कोव्वे की

कोयल ने ढूंढ़ लिया है कोव्वे का घोंसला
और चुपके से रख दिए है अपने अंडे
और कोव्वे के अंडो को फैक दिया है
सेंकती है  मादा कोव्वे की
कोयल के अण्डों को अपना समझ
और दूर से कोयल देखती है
कब फूंटे अंडा और उसमे से उड़ निकले उसका बच्चा
और फूटते ही अंडा
हंसती है कोयल
रोती है मादा कोव्वे की
कोयल उसके आंसुवो में अपनी जीत समझती होगी
मगर मादा कोव्वे की
रो- रोकर मांग रही है ईश्वर  से दुआ
 बच्चा ये भले ही हो कोयल का मगर इसे मेने पाला है
अपने प्यार की उष्मा से इसे सेका है
पाए स्वच्छ आकाश ,सुंदर हरियाली ,लम्बी आयु ,और प्यारा संसार  ...
 (ऐसा कहा जाता है की कोयल कभी भी अपने अंडे नहीं सेंकती ,जैसे ही वह गर्भवती होती है तलाश करती है कोव्वे के घोंसले  का और अपने अंडो को उस घोंसले में रख कर कोव्वे के अंडो को फैक देती है ...ऐसा सदियोंसे होता आ रहा है ..ऐसा तथ्य सुना है )

5 comments:

  1. बच्चा ये भले ही हो कोयल का मगर इसे मेने पाला है
    अपने प्यार की उष्मा से इसे सेका है
    पाए स्वच्छ आकाश ,सुंदर हरियाली ,लम्बी आयु ,और प्यारा संसार ...

    bahut khoobsurat bhav....

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  2. बहुत सुन्दर कविता और भाव भी!
    घुघूती बासूती

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  3. बहुत सशक्त कविता...

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  4. vo bhav dil ko choo jaata hai ..jahan kavita kuchh nahi kahti bas chup rahti hai ...bahut baareeki se chuna hai aapne is vishay ko ....


    bahut sunder bhav ...

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