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Saturday, January 16, 2010

रिश्ता मेरा और उसका

दुनिया में नाचते मोर है तो
 सांप भी है घृणा के

जिनके आतंक से
विषैली न हो जाये हमारी सरिता
हर साँस भरो प्यार से
हर साँस छोडो ईर्ष्या
जो जम कर इस महा सागर के तल पर
 घुल जाएगी  दलदल ज्यों जल में
विचारों  की काई फिर
करती रहेगी  साफ़ सोच के पानी को
और तैरती रहेंगी सतह पर
स्नेह व् विश्वास की रंगीन मछलिया 
सरिता होती रहेगी निर्मल,बहती रहेगी कलकल
जिंदगी का हर पल
आनंद की धुन पर झूमता
भरोसे के चप्पू पर चलता रहेगा
रिश्ता मेरा और उसका
यूँ ही बढ़ता रहेगा 
उस एक की तरफ ....

5 comments:

  1. द्वेष भरे विचार निर्मल होते रहें ....ऐसी ही प्रेम की सरिता बहती रहे.....खूबसूरत लेखन.

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  2. भरोसे के चप्पू पर चलता
    रिश्ता मेरा और उसका
    बढ़ रहा है यूँ
    उस एक की तरफ ..

    Ye lines kafi khoobsurat hain!

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  3. bahut sateek aur sashakt lekhan ...

    Bhawana Sharma

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  4. रिश्ता मेरा और उसका
    यूँ ही बढ़ता रहेगा...

    वाह क्या बात है...

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  5. कृति
    रिश्ते तो प्यार के होते हैं
    द्वेष और नफरत तो इन रिश्तों को तोड़ते हैं
    जो प्यार न करे वो कैसे इन्सां
    शैतानी फितरत तो केवल मौत देती है
    नफरत के इस भंवर से निकल कर
    प्यार का पैग़ाम जो फैलाए
    वही उस ईशवर की सच्ची कृति!!!

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