अपने मौन में ध्यान लगाये
में आ पहुंचा तेरे पास
तुम बेखबर डूबी हो मेरे ख्याल
निहारता हूँ तुम्हे
मौन ही मौन
करता बाते हज़ार
तुम कितनी सुंदर लग रही हो
मुझमे डूबी
जब में अपने से बाहिर निकला
ताक़ रहा था तुम्हे
मेरी देह ने कहा
उसकी छाया से
आज तुम भी हो गए
देखो कितने सुंदर !
एक शाम के उस पूरे दृश्य को ही जीवंत कर दिया,कविता के माध्यम से...अच्छी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteGood thought & very Good expression !!!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteBEHTREEN ABHIVYAKTI.
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