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Sunday, January 31, 2010

तुम हो वो चिड़िया ...

कब से उड़ रही है
थकती नहीं
शाम ढले भी चहचहाती है  
घोंसले को बनाती है ,सजाती है
खुद को सवारने से पहिले
बच्चो को खिलाती है ,उड़ना सिखाती है
फिर अपने साजन का करती है इंतिज़ार
करके श्रींगार ,घोंसले को रखती है
ज्यों हो मंदिर प्यार का
जिसमे आते ही साजन
बजती है प्यार की घंटियाँ
जिसकी मधुर आवाजें 
दिलों की धडकने बन 
संसार में फैलाती है प्यार ,प्यार ,प्यार 
तुम हो वो चिड़िया ...

5 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा

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  2. आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

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  3. sanjay bhasker bahut dhanyawad...aapke protshan se kuch likhna sambhav ho reha hai

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