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Tuesday, January 19, 2010

रिश्ते अब चाँद तारे नहीं

रिश्ते अब चाँद तारे नहीं

चाँद ,किधर हो ?
कई दिनों से याद नहीं आये तुम ?
और न ही याद किया तुमने मुझको
धरती पर ही था में तो
अपने छोटे मोटे कामों में उलझा
आज देखा तुम्हे तो अच्छा लगा
याद आई वे रातें
जो तुम्हरी चांदनी के साए में
देख उसकी परछाई
गुजर जाती थी
याद आया....
... था मैं कैसा पागल?देखता था उसे तुझमें
जो थी किसी दुसरे शहर
आज वो  है मेरे साथ
मगर कहा अब -तुम्हारी चांदनी
रातें भी तपते सूरज की लों में तडपाती है
रिश्ते अब चाँद तारे नहीं
प्यार के सुर नहीं
कुछ और ही चाहते है
जिसकी खोज में कट जाते दिन
कभी रात अब कहा हो पाती है /.........राकेश

3 comments:

  1. रिश्ते अब चाँद तारे नहीं
    प्यार के सुर नहीं
    कुछ और ही चाहते है
    जिसकी खोज में कट जाते दिन
    कभी रात अब कहा हो पाती है
    रिश्तो का आस्तित्व तलाश करते ये शब्द ...........बेहद प्रभावशाली....बन पड़े हैं....
    regards

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  2. rishton ki chahat ki talash ko bahut sashakt tareeke se likha hai....khoobsurat rachna..

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  3. रिश्ते
    कुछ रिश्तों का कोई नाम नहीं होता
    ऐसे रिश्ते बन जाते हैं
    कब कहाँ कैसे
    कोई नहीं जानता
    और फिर एक दिन
    यही रिश्ते बहुत अहम् हो जाते हैं
    उसके लिए
    जो इन रिश्तों की अहमियत को समझता है
    ऐसे रिश्ते जो बन जाते हैं
    जाने कब कहाँ कैसे
    पर बन जाते हैं ज़िन्दगी भर के लिए!

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