धुंध में खोया है रास्ता
जहा में हूँ वहा से आगे बस धुंवा है
कुछ दूरी पे खडी वह भी यही कहती है
दोनों कुछ कदम बढ़ते है
धुंध और बढती है
हर समय खोये वो धुवें में
न जाने कब एक दुसरे से कर लेते प्यार
सूरज की किरने धीरे धीरे पसारने लगती है अपनी रौशनी
छट जाती है धुंध ,अब चेहरे साफ़ दीखते है
प्यार धुंध से हुए ओस के माफिक टपक कर
छोड़ जाता है अपने निशान
कोहरे में खोये रास्ते साफ़ बताते है
कि दोनों के रास्ते अलग है
एक नहीं ,वे कभी हमसफ़र थे नहीं
अब है नहीं .......
सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteप्यार धुंध से हुए ओस के माफिक टपक कर
ReplyDeleteछोड़ जाता है अपने निशान
कोहरे में खोये रास्ते साफ़ बताते है
कि दोनों के रास्ते अलग है
बेहद कोमल एहसास ......रस्ते अलग होने की कसक .....क्या कुछ नहीं है इन पंक्तियों में.......
regards
अच्छी रचना , बधाई
ReplyDeletelajwaab rachna....
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ReplyDeleteधुंध छटी
ReplyDeleteकोहरा हटा
दोनों के चेहरे साफ़ दिखाई देने लगे
जो प्यार उसके चेहरे पर देखने को तरस रही थी
वो नहीं मिला
चेहरे पर केवल उदासीनता के भाव थे
मानो कह रहे हों
कि तुम्हारे प्यार के बदले में देने के लिए
मेरे पास प्यार नहीं
मैं तो केवल कुछ दूर चल पड़ा था तुम्हारे साथ
केवल एक मित्र कि तरह
मैं तो तुम्हारा वो हमसफ़र नहीं
जिसकी तुम्हे तलाश है
मैं तो कुछ दूर साथ चला था
सिर्फ तुम्हारे सफ़र को आसान करने के लिए
अब तुम्हारे मेरे रास्ते अलग हैं
क्योंकि मैं तुम्हारा वो प्यार नहीं
जिसकी तुम्हे तलाश है!!!!!!!!!