देह की चाहना
देह के लिए
बढती ही जाती है
मूल्यों संस्कारों की सीमाओं को लांघना चाहती है
कोई कितनी देर रोक सकेगा वासना !
जितना रोकेगा ,उतनी ही बढ़ेगी पिपासा
आग. ये वो आग है जो गहरे तक लग चुकी है
अब भड़क जायेगी बुझाने पर ..
तो बुझाओं क्यों इस आग को ?
लगने दो ..अविरल
हाँ बदल दो दिशा .....
वासना ,पिपासा का करो श्रंगार
लिखो कविता ,चित्रकारी करो ,मूर्ति कोई सुंदर बना दो ,
नाचों ,गाओ ,फिल्म कोई बना दो ,खिलाडी बनो किसी खेल के
हाथ बनो ऐसे जो पोंछ सके किसी दूसरे की आँख का आंसू
काम करो कोई ऐसा कि आकाश के मुह से निकले अनायास "वाह"....
जल जायेगी ,मिटटी में मिल जायेगी देह
चाहना ,पिपासा ,वासना ,अगर यूँ हो जाए रूपांतरित
नाम तुम्हारा रहेगा ,याद तुम्हरी रहेगी.....
VERY NICE GOOD POST, MERE HISAB SE AAPKO BABA RAMDEV KE PASS JANA CHAHIYE.
ReplyDeleteहूं...बढिया है. अच्छी सलाह.
ReplyDeleteक्या टिप्पणी दूं . हमेशा की तरह शानदार रचनायें. मार्मिक संवेदनशील.
ReplyDeleteराकेश जी ,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मैंने अपने ब्लॉग पर
व्यस्तताओं की वज़ह से काफी देर बाद देखी .
धन्यवाद .
अच्छा लगा .
आप की टिप्पणी मेरे लिए महत्वपूर्ण है .
पुनश्च धन्यवाद्
-- के. रवीन्द्र