Search This Blog

Wednesday, February 3, 2010

मेरा मिटना ही तय करेगा

पहाड़ से झर कर बर्फ मैदान तक आई है
हरियाली सब ओर छाई है
पहाड़ को देख नदी देखो कैसे शरमाई है 
मुड मुड कर देखे जाती है
और तेज और तेज बही जाती है
कल कल करती मुझे कहे जाती है 
जानती हूँ  फिर मिलूंगी उससे
रहूंगी उसके संग
और पहाड़ से करके प्रसंग
बहुँगी अनवरत
अभी तो मिट जाऊं
महासागर में मिल जाऊं
मेरा मिटना ही तय करेगा
मेरा होते रहना ......

8 comments:

  1. अभी तो मिट जाऊं
    महासागर में मिल जाऊं
    मेरा मिटना ही तय करेगा
    मेरा होते रहना ......


    बहुत सुंदर शब्दों में .... सुंदर रचना...

    आभार...

    ReplyDelete
  2. बहुय ही सुन्दर भाव है कविता के राकेश जी

    ReplyDelete
  3. क्या बात है..उम्दा भाव!

    ReplyDelete
  4. suman ,mehfooj ali,hari,udan...aapke aane se aur aapki tippaniyon se mein bahut khush hua hun ....aapke samay ke liye mein aapka rini hun ..dhanyawad

    ReplyDelete
  5. वजूद का मिट जाना ही तो होने की पहचान है
    होने से तो सब का अस्तित्व है
    पहचान तो वो कि मिट कर
    एहसास दिला दे कि मेरा मिटना ही मेरा जीवन है!!!

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. बहुय ही सुन्दर भाव है कविता के

    ReplyDelete