पहाड़ से झर कर बर्फ मैदान तक आई है
हरियाली सब ओर छाई है
पहाड़ को देख नदी देखो कैसे शरमाई है
मुड मुड कर देखे जाती है
और तेज और तेज बही जाती है
कल कल करती मुझे कहे जाती है
जानती हूँ फिर मिलूंगी उससे
रहूंगी उसके संग
और पहाड़ से करके प्रसंग
बहुँगी अनवरत
अभी तो मिट जाऊं
महासागर में मिल जाऊं
मेरा मिटना ही तय करेगा
मेरा होते रहना ......
अभी तो मिट जाऊं
ReplyDeleteमहासागर में मिल जाऊं
मेरा मिटना ही तय करेगा
मेरा होते रहना ......
बहुत सुंदर शब्दों में .... सुंदर रचना...
आभार...
बहुय ही सुन्दर भाव है कविता के राकेश जी
ReplyDeleteक्या बात है..उम्दा भाव!
ReplyDeletesuman ,mehfooj ali,hari,udan...aapke aane se aur aapki tippaniyon se mein bahut khush hua hun ....aapke samay ke liye mein aapka rini hun ..dhanyawad
ReplyDeleteवजूद का मिट जाना ही तो होने की पहचान है
ReplyDeleteहोने से तो सब का अस्तित्व है
पहचान तो वो कि मिट कर
एहसास दिला दे कि मेरा मिटना ही मेरा जीवन है!!!
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ReplyDeletesunder rachana.....
ReplyDeleteबहुय ही सुन्दर भाव है कविता के
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