वो समझ ही नहीं रहा है
बार बार उसी खड्डे की तरफ जाता है
गिरता है , रोता है
फिर बाहिर निकालने की गुहार करता है
कितना भोला है
अपने ही जीवन से खेलता है
दोस्तों से करता प्यार
उन पर लुटाता अपनी जान
समझता नहीं की वे दोस्त नहीं
सुविधाओं का लाभ उठाने आये है
अपना उल्लू साध कर चले जायेंगे- उसे पीछे छोडकर
उसकी नेकी पर ,भोलेपन पर आता है प्यार
कभी गुस्सा
और होता है दुःख ..वो अपनी लापरवाही से पिछड़ गया है
अभी भी मंजिल तक पहुँचने के लिए पार करना है उसे वो रास्ता
जहा खड्डे है ....क्या वो इस बार
अपने को बचा पायेगा ?
अगर वो पहुंचा मंजिल तक
तो याद करेगी ये दुनिया
ये वो दीवाना है ..जो खुद को जलाकर
रोशन करेगा जमाना ...
उसकी नेकी पर ,भोलेपन पर आता है प्यार
ReplyDeleteकभी गुस्सा
-हमें भी यही आ रहा है...बेहतरीन चित्र खींचा है.
charitr chitran jeevant ho gaya hai.........
ReplyDeletebahut sunder abhivykti........
beautiful
ReplyDeleteवाह..खुद को जला कर रोशनी करना ..बहुत खूब एक खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई राकेश जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द-चित्र.
ReplyDeletevery nice :)
ReplyDeleteAapki yeh sabhi kavitaaye achchhi hai. Jindagi ko karib se janaa hai aapne aur yeh kavitaaye jindagi se bhare hai aur kuch-n-kuch sikhate hai. Waakai yeh adbhut rachna hai.
ReplyDeleteMadhuchanda:- Aapki yeh kavita bahut achchhi hai. Jivan ko karib se samajhna aur jammane ke sach ko samajh kar hi aapne yeh kavita likhi hai jo hume bahut kuch sikhati hai. Waao.
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