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Monday, February 15, 2010

मैं ही चोंक गया हूँ खुद को पाकर .....

उसके  रूप मैं कब डूब 
 खुद का चेहरा तक भूल गया
खुदके बारे मैं सोचना भूल गया
फिर ये कैसे सोचता कि
इस प्यार के सरोवर से निकल  कभी  
तेज रश्मियों से लिपट झुलसना भी पडेगा
पावँ इस सख्त जमीन पर रखना भी पड़ेगा
यू निपट अपने को इस वीराने मैं देख
खुद ही खुद से पूछना भी पडेगा
कैसे हुआ ये सब ?
बार बार सवाल कर उत्तर  की खोज मैं
बदहोश भटकना भी  पडेगा
प्यार का सरोवर
निरपेक्ष अब भी बह रहा है
मैं ही चोंक गया हूँ खुद को पाकर .....

4 comments:

  1. फिर ये कैसे सोचता कि
    इस प्यार के सरोवर से निकल कभी
    तेज रश्मियों से लिपट झुलसना भी पडेगा ..

    प्यार में डूब कर अक्सर इंसान जीवन की हक़ीकत भूल जाता है .... ऐसे ही झुलस जाता है सचाई के सामने आते ही ....
    पर फिर भी प्यार चीज़ ही ऐसी है इंसान डूबना चाहता है .........

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  2. कैसे हुआ ये सब ?
    बार बार सवाल कर उत्तर की खोज मैं
    बदहोश भटकना भी पडेगा
    प्यार का सरोवर
    निरपेक्ष अब भी बह रहा है
    मैं ही चोंक गया हूँ खुद को पाकर .....

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  3. sab kuch insaan ke hath me nahee hota...........
    bahut sunder bhavo kee abhivyaktee ...............

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  4. Pyar ki sundar avhivakti...
    Pyar to bus pyar hai. Jindagi mein sachha pyar mil jay to insaan ka jiwan dhanya ho jata hai..
    Bahut subhkamnayen

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