हवाएं इतनी ठंडी, इतनी तेज
यकायक कहा से आई ?
बर्फ गिरी है शायद उस प्रदेश
मेरी नहरें खुश है आएगा फिर पानी
मगर जितना ठंडा हुआ पहाड़
उसकी धोड़ी सी झलक जब हवा ने दिखलाई
तो ठिठुर गया मैं ,सर्दी से डर दुबक लिए सब अपने प्रांगन
पहाड़ तुम पर जमी बर्फ को तुमने कैसे सहा होगा ?
और सह कर भी ,कितने करुण हो जाते हो तुम
बुझाते हम्मारी प्यास ,जगाते हम्मे फिर आस
पत्थर तुम हो या ....?
बहते पानी मैं देख अपनी सूरत
पहाड़ तुम पर आया प्यार .....
Bahut sunder abhivykti .
ReplyDeleteidhar mausam ke mizaaz kuchh badle hain
ReplyDeleteबहते पानी मैं देख अपनी सूरत
ReplyDeleteपहाड़ तुम पर आया प्यार ....
-वाह!! क्या बात है..आनन्द आ गया!
पहाड़ तुम पर जमी बर्फ को तुमने कैसे सहा होगा ?
ReplyDeleteऔर सह कर भी ,कितने करुण हो जाते हो तुम
बुझाते हम्मारी प्यास ,जगाते हम्मे फिर आस
प्रक्रति तो कृिपालू है हम इन्सान ही उसे उजाडने मे लगे हैं बहुत अच्छी रचना शुभकामनायें
बहुत सुन्दर. बधाई.
ReplyDeletewow....amazing :)
ReplyDeleteबेहद उम्दा और गहन प्रस्तुति.
ReplyDelete-वाह!! क्या बात है..आनन्द आ गया!
ReplyDeleteBEHTREEN PARASTUTI..
ReplyDeleteबुझाते हम्मारी प्यास ,जगाते हम्मे फिर आस
ReplyDeleteपत्थर तुम हो या ....?
बहते पानी मैं देख अपनी सूरत
पहाड़ तुम पर आया प्यार .....
Bahut sundar anubhuti...
Bahut shubhkamnayne....