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Wednesday, March 3, 2010

समझ लो

असहाय है जो
उसको अगर दे सको तुम सहारा
तो  खुद ही खड़े होते हो
साफ़ करते हो अपने को
और समझते  हो खुदके होने का अर्थ
असहाय हो आप
अगर समझ  नहीं आती किसी की मजबूरी
क्रूर हो ,हिंसक हो ,और बेचारे भी
समझ  लो
जरुरत है अभी भी तुम्हे सहायता की ....

7 comments:

  1. ...सुन्दर रचना !!!

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  2. Bahut sunder aur saty .........

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  3. बहुत सुन्दर भाव!

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  4. बहुत सुन्दर रचना. बधाई.

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  5. मेरे वजूद का होना न होना एक बराबर
    यदि यह किसी के काम न आ सके!
    मेरी दयनीय असहायता मेरा मुँह चिढ़ाती है,
    मुझ पर हँसतीं है !
    मुझ से हर बार कहती है--... See More
    उठ, कुछ कर !
    उन अभागों के लिए,
    जिनका और कोई नहीं है!
    उठ, और उन्हें गले लगा,
    जो प्यार को तरसते हैं!
    तेरे तो पाँव हैं जो तुझे तेरी मंजिल की तरफ़ ले जायेंगे!
    उठ. और उनका सहारा बन,
    जो चल नहीं सकते!
    तू तो दुनिया देख सकता है,
    उन्हें अपनी आँखों से कुदरत के रंग दिखा,
    जिनकी दुनिया बेरंग है!
    अपनी असहायता के दायरे से बाहर निकल,
    और उनके लिए जी जो तेरी ओर आँखें बीछाए, टकटकी लगाए
    उम्मीद भरी आँखों से देख रहे हैं!
    क्योंकि शायद वह तेरी क्षमता को देख सकते हैं
    वह क्षमता जो तेरी असहायता के पीछे छिपी है!
    उठ, और अपनी असहायता को अपनी ताक़त बना
    और दुनिया के दर्द को बाँट,
    अपनी हस्ती बना!!!!

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