वो जिसके होने से में हो पाया
रातों को जाग जाग कर जिसने मुझे सुलाया
खुद नहीं खाया मगर मुझे खिलाया
कंपकपाती ठण्ड में भी मुझे ओढाया
मुझे बहलाने को उसने असंख्य बार
कवितायेँ सुनाई,लोरी गाई उसने
मुझे सहलाया ,चलना सिखाया
आकाश ,चाँद ,तारे ,सूरज ,
पेड़, पौधे, फूल, कांटे
चिड़िया ,घोंश्ले
धरती, सागर ,बादल ,बारिश
हवा ,तूफ़ान,बर्फ ,
सारी बातें उसने बताई
मैं जितना भी जान पाया
माँ तुमने ही बताया
फिर बहिन ने स्नेह के झरने से मुझे नहलाया
नानी ,दादी ,चाची ,मासी
की गोद खेल खेल जीवन के रहस्यों को पाया
दोस्त बन उसने मुझे सिखाया
प्यार की नदी के संग चल चल यहाँ तुम तक आया
पत्नी को पाकर मेने नया संसार रचाया
पिता बन मेने जाना
अपने होने का नया अर्थ तुमसे ही मेने पहचाना
आज कल परसों ...बरसों ...कई जन्मों
में कैसे भूलू ...महिला ...
तुम्हरे होने से है ये संसार
तुम हो तो है जीने का सार
फिर कैसे भला दिवस केवल एक हो तुम्हारा
तुम हो हर दिवस, हर पल, हर क्षण
मेरी हर सांस
महिला की दी हुई है उधार
अगले जनम महिला बन भी न चूका पाऊं
शायद ये उधार .....
(ये कविता है या मेरे उदगार ,भाव जो भी है समर्पित है माँ ,दादी नानी,चची,मासी ,बहिन ,दोस्त ,पत्नी ...सभी रिश्तों को सजाने वाली घर बनाने वाली महिला को ..जिनके होने से में हूँ ...जिनके होने से में जान पाया ये संसार ..उनको ..महिला दीवस के बहाने ...उनके लिए नहीं मुझ पुरुष के लिए लिखी है ताकि ये भाव पुरुष में और गहरे तक गुंझे और गूंजता रहे ..)
aabhar. aap hamesha hee dil se likhate hai .
ReplyDeletebahut pyaree rachana...........
बहुत ही सुंदर लगा , स्वंत्र मस्तिस्क स्वंत्र विचारो क़ि अभिव्यक्ति , सबको एक संग पिरोना बहुत प्यारी लेखन लगी .....
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteKavita to bahut bhadiya lagi ....Shubhkaamnae!!
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteनारी का अवतरण जीवन में
उधार नहीं, उपकार है,
मैं सदैव ही कृतज्ञ रहता हूँ ।