(यह कविता समर्पित है प्यारी बिटिया को )
झरते हुए समय की
पीली पड़ती इन पत्तियों में
हरापन कैसे आये ?
बेटी सोचती है
बाबा के समय को अपनेपन से कैसे भरू
कि दुःख बाबा के निकट नहीं आये
जानती है बिटिया
पीली पत्तियां फिर से
हरी न होंगी
फिर भी रात दिन बाबा के समय को
अपने प्यार से लपेटती है
खुश है बाबा
बिटिया के प्यार कि थरथराहट ने
इतनी जान दे दी है
कि अब अपनी ढाल उतरते
अस्त होते समय में
कोई इच्छा बाकी न बचेगी
जो खिचेगी ,रोकेगी उतरने से
अपने अहम् ,अपनी वासनाओ को
छोड़ यहा उतर सकूँगा
सुकून से
शिखर से उतारते हुए अपने को
मैने जो पाया -ये तेरा संग
प्यार का ये रंग
वो क्या कम है ?
जीवन के उत्तार
आखिर बिटिया ही काम आई !...
betee papa ke sneh bandhan lagav fikr vatsaly sabhee bhavo ko ujagar karatee acchee rachana.
ReplyDeleteबहुत अपनेपन से भरी रचना. बधाई.
ReplyDeletewow...beutfully composed...bohot khoob..:)
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और सुन्दर भावो से भरी ये रचना भाव विभोर कर गयी......
ReplyDeleteregards
bahut hi sundar bhav.
ReplyDeleteबिटिया सम्बन्धों के क्षेत्र में अधिक संवेदनशील होती हैं ।
ReplyDeleteमेरी भी एक ही बिटिया है और मै भी उसके प्रति इसी तरह आशांवित हूँ ।
ReplyDeleteएक प्यारी कविता |बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteआशा
सही राय के लिये और मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद|
ReplyDeleteआशा