Search This Blog

Tuesday, March 9, 2010

आखिर बिटिया ही काम आई !..

(यह कविता समर्पित है प्यारी बिटिया को )
झरते हुए समय की
पीली पड़ती इन पत्तियों में
हरापन कैसे आये ?
बेटी सोचती है
बाबा के समय को अपनेपन से कैसे भरू
कि दुःख बाबा के निकट नहीं आये
जानती है बिटिया
पीली पत्तियां फिर से
हरी न होंगी
फिर भी रात दिन बाबा के समय को
अपने प्यार से लपेटती है
खुश है बाबा
बिटिया के प्यार कि थरथराहट ने
इतनी जान दे दी है
कि अब अपनी ढाल उतरते
अस्त होते समय में
कोई इच्छा बाकी  न बचेगी
जो खिचेगी ,रोकेगी उतरने  से
अपने अहम् ,अपनी वासनाओ को
छोड़ यहा उतर सकूँगा
सुकून से
शिखर से उतारते हुए अपने को
मैने जो पाया -ये तेरा संग
प्यार का ये रंग
वो क्या कम है ?
जीवन के उत्तार
आखिर बिटिया ही काम आई !...

9 comments:

  1. betee papa ke sneh bandhan lagav fikr vatsaly sabhee bhavo ko ujagar karatee acchee rachana.

    ReplyDelete
  2. बहुत अपनेपन से भरी रचना. बधाई.

    ReplyDelete
  3. wow...beutfully composed...bohot khoob..:)

    ReplyDelete
  4. बहुत ही प्यारी और सुन्दर भावो से भरी ये रचना भाव विभोर कर गयी......
    regards

    ReplyDelete
  5. बिटिया सम्बन्धों के क्षेत्र में अधिक संवेदनशील होती हैं ।

    ReplyDelete
  6. मेरी भी एक ही बिटिया है और मै भी उसके प्रति इसी तरह आशांवित हूँ ।

    ReplyDelete
  7. एक प्यारी कविता |बहुत अच्छी लगी |
    आशा

    ReplyDelete
  8. सही राय के लिये और मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद|
    आशा

    ReplyDelete