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Tuesday, March 16, 2010

बेटी का अकेलापन

बेटी का अकेलापन

बेटी तो अकेली होती है हर हाल
पापा के पास आये तो अपने घर की याद आती है उसे
अपने घर वो सोचती है पापा को
टुकड़े टुकड़े वो जैसे खाती है ,सोती है
रात दिन बुनती हुए सपने
वो जीती है हर पल
मगर होती वो अकेली है
पापा के न रहने पर
बेल की तरह चद्ती है
छाया देती हुए अपने घर पर
और घर में अपने सजन के न रहने पर
सूखते हुए भी सूखती नहीं वो बेल
बच्चों और बच्चों के बच्चों तक को
छाया देती
हरियल वात्सल्य उसका
और सघन
और हरा होता जाता है 
बेटी का अकेलापन सूखी नदी के ठन्डे झोंका सा
इस बढ़ते रेगिस्तान में शीतल बयार सा
चलता जाता है संग  संग साए की तरह ///......राकेश

6 comments:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  2. बेटी का अकेलापन सूखी नदी के ठन्डे झोंका सा
    इस बढ़ते रेगिस्तान में शीतल बयार सा
    चलता जाता है संग संग साए की तरह

    -अद्भुत!! बेहतरीन!

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  3. man ko bahut chuukar gujari aapki ye panktiya.
    bahut badhiya .

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