बेटी का अकेलापन
बेटी तो अकेली होती है हर हाल
पापा के पास आये तो अपने घर की याद आती है उसे
अपने घर वो सोचती है पापा को
टुकड़े टुकड़े वो जैसे खाती है ,सोती है
रात दिन बुनती हुए सपने
वो जीती है हर पल
मगर होती वो अकेली है
पापा के न रहने पर
बेल की तरह चद्ती है
छाया देती हुए अपने घर पर
और घर में अपने सजन के न रहने पर
सूखते हुए भी सूखती नहीं वो बेल
बच्चों और बच्चों के बच्चों तक को
छाया देती
हरियल वात्सल्य उसका
और सघन
और हरा होता जाता है
पापा के पास आये तो अपने घर की याद आती है उसे
अपने घर वो सोचती है पापा को
टुकड़े टुकड़े वो जैसे खाती है ,सोती है
रात दिन बुनती हुए सपने
वो जीती है हर पल
मगर होती वो अकेली है
पापा के न रहने पर
बेल की तरह चद्ती है
छाया देती हुए अपने घर पर
और घर में अपने सजन के न रहने पर
सूखते हुए भी सूखती नहीं वो बेल
बच्चों और बच्चों के बच्चों तक को
छाया देती
हरियल वात्सल्य उसका
और सघन
और हरा होता जाता है
बेटी का अकेलापन सूखी नदी के ठन्डे झोंका सा
इस बढ़ते रेगिस्तान में शीतल बयार सा
चलता जाता है संग संग साए की तरह ///......राकेश
इस बढ़ते रेगिस्तान में शीतल बयार सा
चलता जाता है संग संग साए की तरह ///......राकेश
Simply superb !
ReplyDeleteकई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDeleteबेटी का अकेलापन सूखी नदी के ठन्डे झोंका सा
ReplyDeleteइस बढ़ते रेगिस्तान में शीतल बयार सा
चलता जाता है संग संग साए की तरह
-अद्भुत!! बेहतरीन!
nice
ReplyDeleteman ko bahut chuukar gujari aapki ye panktiya.
ReplyDeletebahut badhiya .
behtareen...
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