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Saturday, March 27, 2010

कविता ,तुम ही तो मिलाती हो

रात के अंधेरों में
सन्नाटों की साय साय
मन में उठती है हाय हाय
कहा हो, कहा हो ?
पुकारता ,खोजता
में मिल जाता हूँ खुदसे अक्सर
तब नींद गहरी आती है
सुबह भी चहकती है
और नहीं मिल पाता जब खुद से
तब खीज से भरा भरा
थका हारा
मिल लेता हूँ तुमसे
कविता ,तुम ही तो मिलाती हो
मुझे खुद से !

7 comments:

  1. bahut hi sundar abhivykti.bahut dino baad aap mere blog par aaye fir bhi aane ke liye dil se dhanyavad . aapki tippaniyon se hi to mera utsaah badhata hai.
    poonam

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  2. मिल लेता हूँ तुमसे
    कविता ,तुम ही तो मिलाती हो
    मुझे खुद से............wah!

    main aur meri kavita.......nice one

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  3. स्वयं की लिखी कवितायें बड़ा सहारा होती हैं, कवि यह जानता है ।

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  4. achchi kavita...aur shukriya likh dala par sarthak tippani ke liye.

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  5. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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