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Thursday, May 13, 2010

हलकी सी बरसात कर गया

हलकी सी बरसात कर गया
दबी गर्म हवाओं को बहार कर गया .

कब से झुलस रही थी उसके लिए
वो यों आकर  मुझे अब अलाव कर गया  .

जाने कैसा  है ये बैरी तूफ़ान 
जो आया मेरे लिए उसे अपने साथ कर गया .

अब मैं कैसे कहूँ  वो आया ही नहीं
आया मगर मुझे अजनबी खुद मेरे लिए कर गया  .

वो मुझमे  उगा कर सब्जा
मुझको न जाने क्या से क्या कर गया .

हलकी सी बरसात कर गया
बालू को मेरी भिगो कर मुझे  बेहाल कर गया .

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर ....अच्छी अभिव्यक्ति .....

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  2. बढ़िया रचना..किसी उमस भरी शाम को लिखी लगती है.

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  3. हलकी सी बरसात कर गया
    दबी गर्म हवाओं को बहार कर गया .
    बहुत सुन्दर बस अब बरसात की ही प्रतीक्षा है .... बढ़िया रचना

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  4. Anonymous14 May, 2010

    बढ़िया रचना

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