हलकी सी बरसात कर गया
दबी गर्म हवाओं को बहार कर गया .
कब से झुलस रही थी उसके लिए
वो यों आकर मुझे अब अलाव कर गया .
जाने कैसा है ये बैरी तूफ़ान
जो आया मेरे लिए उसे अपने साथ कर गया .
अब मैं कैसे कहूँ वो आया ही नहीं
आया मगर मुझे अजनबी खुद मेरे लिए कर गया .
वो मुझमे उगा कर सब्जा
मुझको न जाने क्या से क्या कर गया .
हलकी सी बरसात कर गया
बालू को मेरी भिगो कर मुझे बेहाल कर गया .
बहुत सुन्दर ....अच्छी अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteबढ़िया रचना..किसी उमस भरी शाम को लिखी लगती है.
ReplyDeleteहलकी सी बरसात कर गया
ReplyDeleteदबी गर्म हवाओं को बहार कर गया .
बहुत सुन्दर बस अब बरसात की ही प्रतीक्षा है .... बढ़िया रचना
सुन्दर वर्णन ।
ReplyDeleteबढ़िया रचना
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