जो चले गए वे गूंजते है
जो रहे चुप्प सुन रहे है
नहीं की तलाश में पाया है हमेशा
जो है वो कहा मिला किसे
राह सूनी है मगर बुलाती है
भीड़ भरे चोराहे नकारते है
पेड़ पे चिड़िया का घोंसला
पत्तों को हरा करता है
पीला पड़ता पत्ता हरे को पुख्ता करता है
रेत हुए निसान खोजने को आमादा करते है
जो सुनाई नहीं देती वे आवाजे
मेरे हाल बदले जाती है
जो नहीं है मेरे पास
व्ही जीने का मेरा सामान है
शब्द पुकारते है निकालो मुझमे
खो गए वे अर्थ जिनके लियेमें हुआ
कविता मेरी परेशां भटकती है
मिटटी हंस कर कहे जाती है
आ रहा देखो फिर कोई मिलने मुझमे .......
शब्द पुकारते है निकालो मुझमे
ReplyDeleteखो गए वे अर्थ जिनके लियेमें हुआ
कविता मेरी परेशां भटकती है
मिटटी हंस कर कहे जाती है
आ रहा देखो फिर कोई मिलने मुझमे ....
एक गहरी और कुछ कहती रचना ......हमेशा की तरह लाजवाब
bahut hi naayaab rachna...gehra arth samete hue...
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteआपकी कविता अच्छी लगी।