seep ka sapna
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Friday, May 21, 2010
दोपहर.....
दोपहर
बाल खोले
खुद से बतियाती ,फिर
घर के सूने आँगन
गुनगुनाती है
चौखट झूमती है
खिड़की , दरवाजे
फर्श और छतें...दीवारे
सब नाचते है
वो है
घर की मालकिन
दोपहर.....
4 comments:
Amitraghat
21 May, 2010
ये तो बहुत बढिया है.
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परमजीत सिहँ बाली
21 May, 2010
बहुत बढिया!!
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Udan Tashtari
22 May, 2010
वाह! सुन्दर!
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संजय भास्कर
22 May, 2010
आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
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ये तो बहुत बढिया है.
ReplyDeleteबहुत बढिया!!
ReplyDeleteवाह! सुन्दर!
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
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