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Friday, May 21, 2010

दोपहर.....

दोपहर
बाल खोले
खुद से बतियाती ,फिर
घर के सूने आँगन
गुनगुनाती है
चौखट  झूमती है
खिड़की , दरवाजे
फर्श और छतें...दीवारे
सब नाचते है
वो है 
घर की मालकिन
दोपहर.....

4 comments:

  1. ये तो बहुत बढिया है.

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  2. वाह! सुन्दर!

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  3. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

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