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Saturday, May 22, 2010

हमें जनता की सेवा करने की है बड़ी खाज .........

क्या कहे अब... की धूप तेज है
गर्मी कितनी भयानक
पानी की कितनी कमी
धोड़ी देर में गुल हो जाती बिजली
साधनों के गुलाम हो गए तब
इनकी कमी से पैदा हुई  खीझ
हमें निक्कम्मा बना गयी है
बार बार चीखते है पानी पानी
बिजली बिजली ...
और रोज बहुतेरे उपकरणों पर होते है निर्भर
हाथ  अब केवल बटन दबाते है
पैर अब केवल लटकाने के लिए है
पतलून अच्छी  पहनने के लिए 
पतली टाँगे भी अब कहा से लाये
भोग करके योग करते है
और फिर योग के बाद भोग
गांधीजी के स्वराज को हम किताबों में बंद रखते है
नाम उनका लेकर राजनीती करते है
मगर वो जो कह गए उस पर ताला लगा  कर चाबी कुवे में डालते है
पौधे लगाते है पर पानी कौन दे
पानी का टांका  बनाते है मगर उसको भरने  की फ़िक्र कौन करे
डॉक्टर और इंजिनियर की क्यों सुने...
हम जो कहे वोही हो
ये इतनी धरती अब मेरी यहाँ से में जीता हूँ
यहाँ रहने वाली जनता  के सुख अब मेरे है
गावं का कुवा में पीऊँगा
यहाँ के खेतों में उगने वाली फसलों को में दीमक की तरह चट कर जाउंगा
ये सब करके ही तो अगली बार फिर जीतूंगा
बढ़ रही गर्मी  ,सूख रहे सरोवर
बंजर जमीन ..तस्वीर अकाल की
खींचो ढंग से ,तैयार  करो रिपोर्ट
योजनाये बनाओ ....केंद्र से पैसा लाओ
और देखो बजट आने तक बारिश ना आये
करो ये सारे इंतिजाम
हमें जनता की सेवा करने की है बड़ी खाज .........

3 comments:

  1. ये इतनी धरती अब मेरी यहाँ से में जीता हूँ
    यहाँ रहने वाली जनता के सुख अब मेरे है
    गावं का कुवा में पीऊँगा......waah bahut achcha vyang...

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  2. बहुत ही बेहतरीन पोस्ट लिखी है... एक पोस्ट में ढेरों सवाल कर दिए... और समाज की वास्तविकता भी बता दी...

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  3. सीधा और सपाट कटाक्ष ।

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