Search This Blog

Wednesday, June 2, 2010

वही पेड़ ,वही घोंसला

चिड़िया 
 पंखो को फडफडाती
घोंसलें में जाती ,बाहिर आती
कोंव्वों ,गिद्धों,बिल्लियों से
बचाने अपने बच्चे
पेड़- पेड़ हर दिन
नए घोंसलें बनाती
बच्चे  जिस दिन उड़ जाते 
घोसलें से
चिड़िया का डर फुर्र हो जाता
वही पेड़ ,वही घोंसला
उस चिड़िया का फिर जीवन हो  जाता ..

5 comments:

  1. Anonymous03 June, 2010

    very deep!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर रचना ....अच्छा लिखा है !!!

    ReplyDelete
  3. chidiya ka pura jivan chand lino me

    interesting likhte hain aap .

    ReplyDelete