पहली बरसात से पांखों के
भीतर ...तक
बूँदें जा ठहरी
झटक कर चिड़िया
मार मार चोंचे
पंखों पर
सूखाती
वो बरसात ...
फिर ....निहारती आकाश
शायद ...आज आयें वे
जाऊं
जाकर सजा लूँ
घोंसला
बिछाकर नर्म नर्म हरी घास
टकटकी लगाकर देखूं उनकी राह
बिछा कर जैसे बालू
रेगिस्तान जोहता पूरे सावन
मेह की बाट ....
.
bahut khoobsoorat ...pyaas chalkaati kavita...sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ....मनभावन ....!!!!!!!!!!!!!par hamare yaha to maansoon aa gaya blog par ek baar dekho to sahi
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... लाजवाब!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लाजवाब!! ..............
ReplyDelete