सुख़ है पास ,दुःख अभी दूर है
जानता हूँ दुःख आयेगा अकेला
तब नहीं दिखेगा सुख़ धुंधला भी
अब तो अभ्यास करता हूँ
जो शास्त्रों ने ,ग्रंथो ने ,धर्म ने
साहित्य ने दिया ज्ञान
उसको जीने का अभ्यास
इसलिए हमेशा आनंद होता है मेरे पास
सुख़ में भी आनंद ,दुःख में भी आनंद
ये समय जो भी मिला है मुझे जीने को
ये उसका है प्रसाद ,इसको अपनी भावनाओं से लपेट
क्यों करू इसे बेस्वाद ,मेरा इस पर हक नहीं इतना ....
ये संसार आनंद की है नदी ..बहो इसके संग ..
क्यों चट्टान बन ,रास्ता इसका रोको
क्यों कीचड बन इसको प्रदूषित करो
या क्यों ही बेवजह इसकी सुरक्षा की फिक्र करो
बहो ना इसके संग ..आनंद करो
सुखम् जीवेत ।
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