जमीन के भीतर
रेंगते रेंगते
रिसता रिसता
पहुंचता
खारे समुन्द्र का पानी
यहाँ रेतीले धोरों में
प्यासों के हलक तर करके
अपनी प्यास बुझाता है
इतराता है रेगिस्तान
मुझमें से फूटा---देखो मीठे जल का सोता ..
समुन्द्र
बीते दिनों क़ी याद में
हो रहा है यहाँ मीठा
रेत शायद ही कभी यह जान पायेगी !
एक सुंदर रचना , बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...रेत कब जान पाई है!!
ReplyDeleteसमुन्द्र
ReplyDeleteबीते दिनों क़ी याद में
हो रहा है यहाँ मीठा
achchhee bat kahee aapne