वासना अभी गयी नहीं
अब भी शरीर करता है आकर्षित
प्यार और आकर्षण में फर्क
कभी कभार कर नहीं पाता
छोड़ने को प्यार कहते है
जो मुझसे हो नहीं पाता
उसकी देह में डूबकियां
लगाता मैं..करता प्यार
जानता हूँ देह कहा रहती
मगर फिर भी
देह के सहारे सात जन्मो का
रिश्ता निभाने का संकल्प दोहराता हूँ .
वो मेरी है मैं उसका हूँ
ये सुन भीतर मेरे कौन मुस्कुराता !
अनदेखा कर मन को.... मैं
रस्मो रिवाज निभाता जाता ....
प्यार पीछे छूट जाता
पूरी जिंदगी अपनी मैं
ये क्यूँ निभाता ???
nice post
ReplyDeleteमन मुस्कराता है, जानता है कि निभा नहीं पायेंगे ।
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया बधाई हो।
ReplyDeleteसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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