Search This Blog

Wednesday, June 30, 2010

संन्यास

उसको खोला ,टटोला
खुलने के बाद जो बंद थे रास्ते
उनके अवरोध हटाये
यों खोलता ..टटोलता ..खोजता
अब भी खड़ा हूँ
किसी बंद रास्ते के बाहिर
और जितना खोजता हूँ
उतना ही उलझता  जाता हूँ
छोर कोई मिलता नहीं
रहस्य  कभी सुलझता नहीं
और जब कोई कहता है
व्यर्थ ढूंढते हो
देखो इसमे रहस्य जैसा कुछ भी तो नहीं
तब हैरान उसे देखता हूँ
और बजाय खुश होने के
उदासियों के पहाडो पर
किसी सन्यासी सा
किसी गुफा के अँधेरे
खोता अपना आप ...रहता हूँ 

5 comments:

  1. और बजाय खुश होने के
    उदासियों के पहाडो पर
    किसी सन्यासी सा
    किसी गुफा के अँधेरे
    खोता अपना आप ...रहता हूँ
    मन की कशमक्श को बहुत अच्छी तर अभिव्यक्त किया है । शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. Wah. bahut khub Rakesh ji.

    Mere blog par aane aur kavitaon par TippaNiyon ke liye bahut dhanwaad.

    -Meena

    ReplyDelete
  3. dilemma found a vent thru ur words....
    talaash jari rahe...
    khojne se kya nahi milta!!!
    keep writing...
    regards,

    ReplyDelete