शब्दों के बिना
पल पल सुनता अपनी धडकनें
न जाने कब सुनने लगा उसकी धड़कने
बीहड़ वन में कब लगा दिए मैने पौधे फूल्लों के
कब हरा कर दिया अपने पत्तों को भी उसकी हवा से
आज मगर ये बाग़ बगीचा मेरी जिंदगी का..
क्यों उजड़ता जाता है !
मौन भी मुखर होता जाता है
शब्द बहुतेरे भीड़ ज्यों आ गए है
मेरे और उसके बीच
बहते है शब्द
इस बगीचे
अपने मौन से दूर होता जाता हूँ
शायद
प्यार से भी दूर हो गया हूँ
पेड़.. अब सूखे पत्तों को बिखेरता है
हमारी राह
अब कहाँ ... लाल सुर्ख
वो फूल
और कहाँ उड़ चली वो चिड़िया !
बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebahut khoob bahut sundar rachna.....
ReplyDelete.......बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteabhiram!
ReplyDeletesundar!
ud chali chidiyan ko dhoondhti hui si pyari kavita.....
regards,